धन्य भारत।
राजा अर्थात देश का प्रधान जो हमारे गुरु है, उसमें कोई सन्देह नहीं। शास्त्रकारगण बोलते है कि, "अष्टाभिश्च सुरेन्द्राणां मात्राभि निर्मिनो नृप: ।" अर्थात् राजा अष्टदिक् पाल की अष्टमात्रा से निर्मित हुए हैं। वस्तुत: भी जिनके प्रति भगवान् कोटि कोटि मानवों के उल्लेखित भार प्रदान करते हैं, वे सामान्य लोग नहीं है। वही भगवन्निशष्ट महापुरुष जो भक्तिभाजन व गुरुपद वाच्च है, तद्वषय में संशय करने का कोई भी कारण नहीं है। अभिनिवेश सहकार से विचार करने पर प्रतीति होगा कि, जो लोग हमको असत्-पथ से निवृत्त करके सत् पथ पर परिचालित करते हैं, जो लोग हमारे उन्नति साधन में निरन्तर व्यापृत है, सुतरां जो लोग हमारे भक्तिभाजन है, वे लोग ही गुरु कहकर अभिहित है। राजा भी हम लोगों को असत् पथ से निवृत्त व सत् पर परिचालित कर रहे हैं एवं हमारी उन्नति के लिए विविध अनुष्ठान में निरन्तर व्यापृत है, सुतरां राजा हमारे भक्ति के पात्र व गुरुजन है। इस कारण राजा के प्रति भक्ति व विश्वास करना अवश्य कर्त्तव्य है। राजभक्ति के न रहने से अनन्त जगत के राजा जगदीश्वर के प्रति व विश्वास करना असाध्य है।
- महात्मा गुरुनाथ।
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